वर्तमान में नाजुक दौर में हैं सिविल सेवाएं - अरुणा रॉय
जयपुर। सिविल सेवाएं वर्तमान में नाजुक दौर से गुजर रही हैं। एक ओर जहां सिविल सर्विसेज के प्रति अभी भी आकर्षण बना हुआ है, वहीं कार्यरत आईएएस अधिकारी यह कहते हुए सिविल सर्विस से इस्तीफा दे रहे हैं कि सरकार द्वारा उनके संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है। यह कहना था मजदूर किसान शक्ति संगठन (एमकेएसएस) और सूचना के अधिकार के राष्ट्रीय अभियान की संस्थापक सदस्य अरुणा रॉय का। वे जयपुर में एम. एल. मेहता मेमोरियल ओरेशन में संबोधित कर रही थीं। इस कार्यक्रम के तहत उन्होंने 'वर्किंग द सिस्टम: बिटविन कांस्ट्रेंट्स एंड पॉसिबिलिटीज' विषय पर लैक्चर दिया।
इसका आयोजन एमएल मेहता मेमोरियल फाउंडेशन (एमएलएमएमएफ) और एचसीएम राजस्थान स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन (रीपा) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
अरुणा रॉय ने आगे कहा कि सिविल सेवाओं में अनेक लेटरल एंट्रीज भी हुई हैं और ऐसी चर्चा हैं कि यूपीएससी की संरचना को बदल दिया जाएगा, जिससे इसकी स्वतंत्रता में कमी आएगी। उन्होंने बताया कि एम.एल. मेहता को याद करने का यह उपयुक्त समय है। एम. एल. मेहता ने विकास के दायरे में पारंपरिक एवं स्थायी सिविल सेवा की स्थापना के लिए निरंतर कार्य किया और इसकी सीमाओं का विस्तार करते हुए इसमें एनजीओ को शामिल किया। उन्होंने यह सुझाव देते हुए ओरेशन का समापन किया कि सार्वजनिक रूप से और वर्तमान संदर्भ में स्थायी सिविल सेवा के महत्व की एक बार फिर से जांच की जानी चाहिए।
अरुणा रॉय ने अपने भाषण के दौरान राजस्थान के विकास की राजनीति के लिए सिविल सर्विस के अतिरिक्त अन्य लोगों के साथ एम. एल. मेहता की महत्वपूर्ण संबंधों पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि मेहता ने सभी क्षेत्रों के लोगों के साथ सदैव समानता से व्यवहार किया। इससे उनका कईयों के साथ जुड़ाव बना और इससे एक ऐसी परंपरा बनी जो अनेक वर्षों तक चली। उनके पास प्रशासन के मुद्दों से समाज के सक्रिय लोगों को जोड़ने की क्षमता थी। वे ऐसे अनेक आईएएस अधिकारियों के संरक्षक भी थे, जो समय-समय पर सहयोग एवं मार्गदर्शन के लिए उन्हें याद करते थे।
एम. एल. मेहता लोगों को सुनने के महत्व को अच्छे से समझते थे और उनका दिमाग हमेशा विचारों से परिपूर्ण रहता था। उन्होंने कमजोर वर्ग की परिस्थितियों के समाधान के लिए मुख्य रूप से सिविल सेवा एवं प्रशासन की संरचना को भीतर तक समझा था। उन्होंने बेहद शीघ्र और ध्यानपूर्वक विस्तृत योजनाएं बनाई। एम. एल. मेहता को एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर लंबे समय तक याद किया जाएगा, जो नौकरशाही और राजनीतिक सीमाओं में बंधा महात्मा गांधी के 'लास्ट मैन' के बारे में सोचते थे। उन्होंने काफी अच्छा कार्य किया और उन्हें अनिल बोर्डिया एवं कई अन्य लोगों के साथ राजस्थान की सामूहिक विकास विरासत के हिस्से के रूप में याद किया जाना चाहिए।
इस अवसर पर 10 स्टूडेंट्स को 10,000 और 6,000 रुपए की राशि की स्कॉलरशिप प्रदान की गई। ये स्टूडेंट्स हैं - दीक्षा शर्मा, हंसा गुर्जर, भावना मूल राजानी, प्रेरणा सोलंकी, राधिका सिंह, मनीषा कुमारी, रवि कुमार, शिवानंद भट्ट, टीना कुमावत एवं योजना जैमिनी। स्वर्गीय श्री एम. एल. मेहता द्वारा स्थापित सुमेधा एनजीओ की ओर से यह स्कॉलरशिप दी गई।