कोरोना से मरने वालों की असली संख्या शायद ही कभी पता चले
नई दिल्ली। कोरोना वायरस से दुनिया भर में कितने लोगों की मौत हुई, यह आंकड़ा शायद ही कभी सामने आएगा। इसकी वजह यह है कि आंकड़ों को दर्ज करने के लिए हर देश कुछ अलग तरीका अपना रहा है। ऐसा नहीं है कि इलाज और सावधानी बरतने के डब्ल्यूएचओ के प्रमाणित तरीकों की तरह आंकड़े जमा करने का भी कोई एक तरीका है। ऐसे में इन आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगा हुआ है। अमेरिका में तो लोग शिकायत कर रहे हैं कि जब टेस्ट आसानी से उपलब्ध नहीं था, तब कई लोगों की मौत की वजह निमोनिया बताई गई और उन्हें सूची में शामिल नहीं किया जबकि निमोनिया कोरोना के कारण होता है।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसारअब तक दुनिया भर में 30 लाख से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं और दो लाख से भी ज्यादा मौतें हो चुकी हैं। हर दिन दुनिया भर में कोरोना के कारण मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। रोज हजारों लोग इसका शिकार हो रहे हैं। लेकिन आंकड़ों को दर्ज करने के लिए हर देश कुछ अलग तरीका अपना रहा है। डी डब्ल्यू वर्ल्ड की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि जर्मनी, स्पेन, दक्षिण कोरिया और लक्जमबर्ग में हर उस व्यक्ति को कोविड-19 के कारण मरने वालों की सूची में डाला जाता है जिसका कोरोना टेस्ट का नतीजा पॉजिटिव रहा हो। फिर चाहे उस व्यक्ति की मौत अस्पताल में हो या फिर घर में। वहीं बेल्जियम में आधी से ज्यादा मौतें नर्सिंग होम में हुई। यहां उन लोगों को भी सूची में रखा गया जिन पर कोरोना होने का शक था लेकिन उनके टेस्ट नहीं हुए थे। फ्रांस में भी एक तिहाई मौतें नर्सिंग होम में ही हुई।
चीन और ईरान में केवल उन लोगों को सूची में रखा गया जिनकी मौत अस्पताल में हुई। घर में मरने वालों का आंकड़ा इसमें शामिल नहीं किया गया। कुछ ऐसा ही हाल ब्रिटेन का भी है। वहां ऑफिस फॉर नेशनल स्टैटिस्टिक्स हर हफ्ते आंकड़े प्रकाशित कर रहा है लेकिन दस दिन पुराने। साथ ही इनमें स्कॉटलैंड और उत्तरी आयरलैंड के मामलों का कोई जिक्र नहीं है।
यूरोप में सबसे ज्यादा मौतें इटली में हुई। लेकिन आधिकारिक रिकॉर्ड दिखाते हैं कि सिर्फ बड़े वृद्धाश्रमों को ही सूची में जोड़ा गया था। वहीं अमेरिका में, जहां दुनिया की सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं, हर राज्य का तरीका दूसरे राज्य से अलग है। मिसाल के तौर पर न्यूयॉर्क नर्सिंग होम में मरने वालों को संख्या में शामिल करता है, जबकि कैलिफोर्निया नहीं करता। अब तक अमेरिका में मरने वालों की संख्या 50 हजार को पार कर चुकी है।
जहां अस्पताल में मौतें हो रही हैं, वहां जरूरी नहीं कि हर मौत को सूची में जोड़ा ही जाए। बेल्जियम, ब्रिटेन, इटली, लक्जमबर्ग, दक्षिण कोरिया और स्पेन ने तय किया है कि यदि मरने वाले व्यक्ति का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव रहा हो, तो उसे सूची में जोड़ा ही जाएगा, फिर चाहे मौत पहले से चल रही किसी बीमारी के कारण ही क्यों ना हुई हो। इसके विपरीत ईरान ऐसा नहीं करता। यहां तक कि पॉजिटिव टेस्ट कर चुके व्यक्ति की मौत सांस की किसी और दिक्कत से हुई हो, तो भी उसे सूची में नहीं जोड़ा जाता है।
अमेरिका में अगर मौत से पहले व्यक्ति का कोरोना टेस्ट नहीं हुआ था और डॉक्टर को कोरोना का शक है तो वह मृत्यु प्रमाणपत्र पर कोविड-19 को "संभावित कारण" बता सकता है। लेकिन इसे आधिकारिक रूप से कोरोना के कारण हुई मौतों की सूची में शामिल नहीं किया जा सकता। इसी तरह से स्पेन में भी मौत से पहले अगर टेस्ट नहीं हुआ था तो उसे सूची में दर्ज नहीं किया जा सकता।
कई देशों पर तो असली आंकड़े छिपाने और झूठ बोलने के आरोप भी लग रहे हैं। अमेरिका लगातार ईरान पर आंकड़े छिपाने के आरोप लगाता रहा है। चीन के आंकड़े तो दुनिया भर में चर्चा का विषय बने हुए हैं। कई हफ्तों तक संख्या कम दिखाने के बाद 17 अप्रैल को चीन के आंकड़े में अचानक ही 40 फीसदी का उछाल देखी गई। वुहान, जहां से इस वायरस की शुरुआत हुई, वहां के 1300 और मामले जोड़े गए। सरकार ने कहा कि घर में मौत होने के कारण इन लोगों को पहले सूची में जोड़ा नहीं जा सका था। ऐसे में आधिकारिक तौर पर भले ही दुनिया में अब तक दो लाख लोगों की जान गई हो लेकिन असली आंकड़ा कई गुना ज्यादा हो सकता है। इस संकट के खत्म हो जाने के बाद भी शायद वैज्ञानिक एक अनुमान मात्र ही बता सकेंगे। असली संख्या हमेशा एक पहेली बनी रहेगी।