पूर्वोत्तर में पढ़ने की आदत को बढ़ावा देने की अनूठी पहल, घर-घर पहुँचा रहे हैं क़िताबें
आइजल। कहा जाता है कि किताबें मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र होती हैं। कोरोना के मौजूदा दौर में पूर्वोत्तर के दो राज्यों में यह कहावत एक बार फिर चरितर्थ हो रही है। पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम के सबसे बड़े सामाजिक संगठन यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) ने लॉकडाउन के दौर में लोगों को व्यस्त रखने के लिए राजधानी आइजल के सबसे बड़े मोहल्ले रामलूम साउथ में लोगों को घर-घर उनकी पसंदीदा किताबें पहुंचाना शुरू किया था। मिजोरम की इस पहल से प्रेरणा लेकर पड़ोसी अरुणाचल प्रदेश में भी हाल में सड़क के किनारे एक ऐसी लाइब्रेरी शुरू हुई है।
इस पहल से एक ओर जहां आम लोगों को लॉकडाउन के दौरान पैदा होने वाली बोरियत दूर करने में मदद मिली, वहीं खासकर युवा तबके में पढ़ने की आदत को भी बढ़ावा मिला। अगर इस तथ्य को ध्यान में रखें कि वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक 91. 33 प्रतिशत की साक्षरता दर के साथ मिजोरम, केरल और लक्ष्यद्वीप के बाद देश का तीसरा सबसे बड़ा साक्षर राज्य है, तो इस लाइब्रेरी की बढ़ती लोकप्रियता समझना मुश्किल नहीं है। वर्ष 1935 में स्थापित वाईएमए राज्य का सबसे बड़ा और ताकतवर सामाजिक संगठन है।
देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान इंटरनेट और टीवी चैनलों से ऊब कर लोग किताबों की तलाश कर रहे थे। लेकिन जब तमाम दुकानें और पुस्तकालय बंद हों तो लोग आखिर किताबें लाएंगे कहां से? पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम के सबसे बड़े सामाजिक संगठन यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) ने इस मुश्किल सवाल का जवाब तलाशने की पहल की। यहां यह सवाल उठना लाजिमी है कि ई-बुक और इंटरनेट के दौर में भला किताबों की क्या कमी है? इस सवाल का जवाब वाईएमए की लाइब्रेरी सब-कमिटी के प्रमुख बी। लालमालसावमा देते हैं। वह कहते हैं, ई-बुक्स काफी लोकप्रिय हैं। लेकिन मिजो भाषा में ज्यादा ई-बुक्स उपलब्ध नहीं हैं। इसी वजह से लोग किताबों को तरजीह दे रहे हैं। इसके अलावा कई इलाकों में इंटरनेट की कनेक्टिविटी भी ठीक नहीं है।”
वाईएमए की रामलूम शाखा ने लॉकडाउन के दौरान अप्रैल के आखिरी सप्ताह में अंग्रेजी और मिजो भाषा की पुस्तकों के साथ इस कावटकाई लाइब्रेरी की शुरुआत की थी। मिजो भाषा में कावटकाई का अर्थ मोबाइल या भ्राम्यमान होता है। लालमालसावमा बताते हैं कि इस योजना का मुख्य मकसद खासकर युवा तबके में किताबों के प्रति दिलचस्पी पैदा करना और खाली समय का सदुपयोग करना था। लोग घरों में बैठे-बैठे ऊब रहे थे।
आखिर यह लाइब्रेरी काम कैसे करती है? इसके लिए वाईएमए ने व्हाट्सएप्प पर एक ग्रुप बनाया है। उस पर किताबों के कवर और भीतर के दो-चार पन्नों की तस्वीरें डाल दी जाती हैं। उसके बाद लोग अपनी पसंदीदा पुस्तकों का आर्डर करते हैं। लॉकडाउन के दौरान मोहल्ले से आर्डर मिलने के बाद संगठन के वालंटियर सुरक्षा नियमों का पालन करते हुए उन किताबों को घर-घर पहुंचाते रहे। इस योजना के तहत कोई भी व्यक्ति दस दिनों के लिए चार किताबें ले सकता है। लेकिन लालमालसावमा के मुताबिक, ज्यादातर लोग दो दिन में ही पूरी किताब पढ़ लेते हैं। उसके बाद वहां जाकर उन किताबों को वापस ले लिया जाता है। अब तो लोग खुद आकर किताबें ले जाते हैं।
वैसे, बांग्लादेश और म्यामांर की सीमा से सटे इस पर्वतीय राज्य में पढ़ने की संस्कृति काफी गहरे रची-बसी है। वर्ष 2019 में मिजो लेखक और पत्रकार लालरुआतलुआंगा चावंग्टे ने आइजल में सड़कों के किनारे छोटी-छोटी कई लाइब्रेरियों की स्थापना की थी। इस योजना के तहत खुले में रैक पर पुस्तकें रखी रहती हैं। लोग आकर वहां से अपनी पसंद की किताबें ले जाते हैं और पढ़ कर उनको दोबारा वहीं रख जाते हैं। लोग वहां किताबें दान में भी देते हैं। यह पहल जल्दी ही इतनी लोकप्रिय हुई कि राजधानी को दूसरे इलाकों में भी इसकी शुरुआत हो गई। चावंग्टे कहते हैं, प्रमुख मकसद युवा वर्ग में किताबों के प्रति दिलचस्पी बढ़ाना था। मिजोरम के लोगों में पढ़ने की आदत है और राज्य के हर इलाके में कोई न कोई लाइब्रेरी मिल जाएगी।”