मुकदमों के साये में मीडिया
देश में सरकारी स्तर पर मीडिया को डराने-धमकाने और उसे अपने कहे मुताबिक चलने के लिए बाध्य करने की कोशिशें बदस्तूर जारी हैं। हाल ही गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर परेड और उस दौरान हुई हिंसा के सिलसिले में मीडिया कर्मियों के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करने से यह बात एक बार फिर साबित हुई है। पुलिस में दर्ज रिपोर्टों में कहा गया है कि किसानों की प्रदर्शन रैलियों और हिंसा की रिपोर्टिंग के दौरान इन मीडिया कर्मियों ने अपने सोशल मीडिया के जरिये ट्वीट भी किए और ‘ये ट्वीट इरादतन दुर्भावनापूर्ण थे और लाल किले पर हुए उपद्रव का कारण बने।’ दुनियाभर में शायद यह पहला मामला होगा, जब किसी पत्रकार के ट्वीट करने पर देश की राजधानी में बड़े पैमाने पर उपद्रव फैल जाए।
- श्याम माथुर -
देश के वरिष्ठ पत्रकार और ‘द वायर ऑनलाइन’ के संपादक सिद्धार्थ
वरदराजन ने कुछ अर्सा पहले कहा था कि आलोचना सरकार और बड़ी कंपनियों दोनों को ही पसंद
नहीं आती है। यही कारण है कि आज मीडिया का एक बड़ा हिस्सा सरकार के दिखाए रास्ते पर
चलता है। उसे खुद को सेंसर करने में कोई दिक्कत नहीं होती और वह उसी तरह से रिपोर्ट
करता है जैसा कि सरकार चाहती है। दूसरी तरफ ऐसे पत्रकार जो सरकार के एजेंडे पर नहीं
चलते हैं, उन्हें झूठे मुकदमों में फंसा कर उन पर दबाव बनाया जाता है।
हाल ही गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसानों की ‘ट्रैक्टर परेड’और उस दौरान हुई
हिंसा की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की घटना के बाद
भी यह बात एक बार फिर साबित हो गई है। एक प्रदर्शनकारी की मौत से जुड़ी घटना की रिपोर्टिंग
करने,
घटनाक्रम की जानकारी अपने निजी सोशल मीडिया हैंडल पर तथा अपने प्रकाशनों पर देने
पर पत्रकारों को खास तौर पर निशाना बनाया गया। खास बात यह है कि 26 जनवरी की घटना को
लेकर कुछ पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोह का आरोप भी लगाया गया। जाहिर है कि यह मीडिया
को डराने-धमकाने का एक ऐसा हथियार है, जिसका इस्तेमाल हाल के
दिनों में बढ़ता जा रहा है। राजद्रोह से संबंधित कानून के इस लापरवाही से इस्तेमाल की
सुप्रीम कोर्ट भी आलोचना कर चुका है, लेकिन सरकारें इससे मुंह
फेरती आई हैं।
पिछले साल अक्टूबर महीने में ऑस्ट्रिया स्थित
इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट (आईपीआई) और बेल्जियम-स्थित इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट्स
(आईएफजे) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर इस बात पर चिंता जताई थी कि
पिछले कुछ महीनों में देश के अलग-अलग हिस्सों में कई पत्रकारों के खिलाफ भारतीय दंड
संहिता की धारा 124ए के तहत राजद्रोह का आरोप लगा कर मामले दर्ज किए जा रहे हैं। इन
दो बड़े अंतरराष्ट्रीय संगठनों के इस पत्र को जाहिर है कि रद्दी की टोकरी के हवाले कर
दिया गया और पूरे देश में मीडिया के खिलाफ सरकारी दमन का सिलसिला बरकरार रहा। ताजा
उदाहरण किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग के मामले में देखने को मिला है, जब किसानों की
ट्रैक्टर परेड और उस दौरान हुई हिंसा के सिलसिले में नोएडा पुलिस ने कांग्रेस सांसद
शशि थरूर और छह पत्रकारों के खिलाफ देशद्रोह समेत अन्य आरोपों में मामला दर्ज किया।
जिन पत्रकारों के नाम पुलिस की रिपोर्ट में हैं, उनमें मृणाल पांडे, राजदीप सरदेसाई, विनोद जोस, जफर आगा, परेश नाथ और अनंत
नाथ शामिल हैं। मध्य प्रदेश पुलिस ने भी थरूर और छह अन्य पत्रकारों के खिलाफ एक प्राथमिकी
दर्ज की है। यह प्राथमिकी हिंसा की घटना पर उनके कथित तौर पर गुमराह करने वाले ट्वीट
को लेकर दर्ज की गई है।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और दूसरे तमाम मीडिया
संगठनों ने किसानों की ‘ट्रैक्टर परेड’और उस दौरान हुई
हिंसा की रिपोर्टिंग करने को लेकर वरिष्ठ संपादकों और पत्रकारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज
किये जाने की कड़ी निंदा की है। साथ ही, उन्होंने इस कार्रवाई को
मीडिया को ‘डराने-धमकाने’की कोशिश बताया है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया
ने मांग की है कि ऐसी प्राथमिकियां तुरंत वापस ली जाएं तथा मीडिया को बिना किसी डर
के आजादी के साथ रिपोर्टिंग करने की इजाजत दी जाए।
देश में मीडिया की आजादी पर हमले का यह पहला
मामला नहीं है। पिछले साल जून महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र
वाराणसी में उनके गोद लिए गांव के हालात दिखाने वाली रिपोर्ट की वजह से एक न्यूज वेबसाइट
की रिपोर्टर और उनके संपादक पर एफआईआर दर्ज की गई थी। इससे पहले देश के जाने-माने वरिष्ठ
पत्रकार विनोद दुआ पर भी दिल्ली और हिमाचल प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर एफआईआर दर्ज
कराई गई थी। विनोद दुआ पर फेक न्यूज फैलाने का आरोप लगाया गया था। हिमाचल प्रदेश में
उन पर दर्ज की गई एफआईआर में देशद्रोह की धारा भी शामिल की गई थी। कुछ महीने पहले न्यूज
वेबसाइट ‘द वायर’ के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन पर भी उत्तर प्रदेश
के अयोध्या में दो एफआईआर दर्ज की गई थीं। उन पर आरोप है कि उन्होंने लॉकडाउन के बावजूद
अयोध्या में होने वाले एक कार्यक्रम में योगी आदित्यनाथ के शामिल होने संबंधी बात छापकर
अफवाह फैलाई। हाल ही उत्तर प्रदेश की रामपुर पुलिस ने सिद्धार्थ वरदराजन के खिलाफ एक
ट्वीट को लेकर एफआईआर दर्ज की है। इस ट्वीट में उन्होंने किसानों की हालिया ट्रैक्टर
परेड के दौरान दिल्ली के आईटीओ इलाके में एक प्रदर्शनकारी की मौत को लेकर उनके परिवार
के दावे से संबंधित खबर को ट्वीट किया था।
पुलिस मंे दर्ज रिपोर्टों में कहा गया है कि
किसानों की प्रदर्शन रैलियों और हिंसा की रिपोर्टिंग के दौरान इन मीडिया कर्मियों ने
अपने सोशल मीडिया के जरिये ट्वीट भी किए और ‘ये ट्वीट इरादतन दुर्भावनापूर्ण थे और लाल
किले पर हुए उपद्रव का कारण बने।’दुनियाभर में शायद यह पहला मामला होगा, जब किसी पत्रकार
के ट्वीट करने पर देश की राजधानी में बड़े पैमाने पर उपद्रव फैल जाए। पुलिस ने दस अलग-अलग
प्रावधानों के तहत रिपोर्ट दर्ज हैं, जिनमें राजद्रोह के कानून, सांप्रदायिक सौहार्द्र
बिगाड़ना, धार्मिक मान्यताओं को अपमानित करना आदि शामिल हैं। साफ है कि
देशद्रोह जैसे कई कानूनों का इस्तेमाल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करने के लिए
किया जा रहा है और इस तरह के कानूनों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल स्वतंत्र प्रेस के खिलाफ
प्रतिरोधक के तौर पर किया जा रहा है।