अनाथ बच्चों पर ममता बरसाने वाली सिंधुताई ने दुनिया को कहा - अलविदा!
-मंजु माहेश्वरी -
महाराष्ट्र की मदर टेरेसा, अनाथ
बच्चों की माँ और सामाजिक कार्यकर्ता सिंधुताई सपकाल ने 4 जनवरी को इस दुनिया को
अलविदा कह दिया। सबकी माँ सिंधुताई उन बच्चों के लिए ईश्वर से कम नहीं थीं, जो
अनाथ या निराश्रित थे। हालांकि सिंधुताई की संस्था में 'अनाथ' शब्द
का इस्तेमाल वर्जित रहा है, जहां हज़ारों अनाथ बच्चों को
सहारा मिलता है। बच्चे उन्हें ताई कहकर ही बुलाते थे। सबकी माँ थीं वे, एक
ममतामयी बरगद की छाँव तले करीब 1500 से ज्यादा बच्चों के वृहद परिवार की मुखिया, माँ, सहारा, जननी
सबकुछ।
महाराष्ट्र के वर्धा जिले के एक सामान्य गोपालक
परिवार में 14 नवंबर 1948 को जन्मीं सिंधुताई । रूढ़िवादी
परिवार होने के कारण सिंधुताई को चौथी क्लास में स्कूल छोड़ना पड़ा। 10 साल की उम्र
में दुगनी उम्र के व्यक्ति से शादी हुई। कुछ साल
बाद वह गर्भवती हो गई। गाँववालों को उनकी मजदूरी के पैसे ना देनेवाले गाँव के
मुखिया की शिकायत सिन्धुताई ने जिला अधिकारी से की थी। अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मुखिया ने सिन्धुताई
के पति श्री हरि को सिन्धुताई को घर से बाहर निकालने के लिए उकसाया और उन्होंने 9 महीने की गर्भवती पत्नी को लात मारकर घर से निकाल दिया। उसी रात ताई ने
गौ-शाला में एक बेटी को जन्म दिया। जब सहारे के लिए वे अपनी माँ के घर गईं तब माँ
ने उन्हें घर में रखने से इनकार कर दिया। तब तक
ताई के पिताजी गुजर चुके थे । सिन्धुताई अपना पेट भरने के लिए ट्रेन में भीख भी
मांगती और रात को खुद को और बेटी को सुरक्षित रखने के लिए श्मशान में रहती थीं। इन सब बातों ने उन्हें अंदर तक झकझोर दिया। उन्होंने
आत्महत्या करने की भी सोची। बाद में कभी-कभी श्मशान घाट में चिता पर सेक कर रोटी
भी खाई। एक दिन रेलवे स्टेशन पर सिंधुताई को एक अनाथ बच्चा मिला। यहीं से उन्हें
बेसहारा बच्चों की सहायता करने की प्रेरणा मिली। उसी समय सिंधुताई के जहन में यह
विचार कौंधा कि ऐसे और भी हजारों बच्चे हैं, उनका
क्या…
? सिंधु ताई ने अपनी जिंदगी अनाथ बच्चों की सेवा
में गुजारी और बन गईं महाराष्ट्र की 'मदर
टेरेसा'।
इसके बाद शुरू हुआ सिलसिला, जो आज महाराष्ट्र की 6 बड़ी
समाजसेवी संस्थाओं में तब्दील हो चुका है। सभी बच्चों को वे अपना बेटा/बेटी मानती
रही।
सिंधुताई के लिए कहा जाता है कि इनके 1500
बच्चे, 150
से ज्यादा बहुएं और 300 से ज्यादा दामाद हैं। ये संख्या शायद अब तक तो कुछ और भी
बढ़ गई होती, लेकिन वह बच्चों को तब तक अपने साथ रखती, जब
तक वे अपने पैरों पर खड़े नहीं हो जाते। । 2021 में पद्मश्री मिलने तक सिंधुताई को
700 से ज्यादा सम्मान मिल चुके । उन्हें अब तक मिले सम्मान से जो भी रकम मिली, वह
भी उन्होंने बच्चों के पालन-पोषण में खर्च कर दी। सिंधुताई के जीवन पर 2010 में
मराठी में फिल्म बन चुकी है। इस फिल्म का नाम था- मी सिंधुताई सपकाल। निर्माता
अनंत महादेवन की इस फ़ाइल का चयन 54वें लंदन फिल्म महोत्सव में वर्ल्ड प्रीमियर के
लिए भी किया गया था।
सिंधुताई पर ‘आमची
माई और ‘सिंधुताई
सपकाल’ किताबें
भी लिखी गईं । उनके आज कई एनजीओ भी हैं। उनका
पहला एनजीओ चिकलदरा में खुला, जिसका
नाम सावित्रीबाई फुले गर्ल्स हॉस्टल था। फिर धीरे- धीरे कई एनजीओ खुलते ही चले गए, जैसे-
सन्मति बाल निकेतन, अभिमान बाल भवन, ममता
बाल सदन आदि।
कुछ साल पहले कौन बनेगा करोड़पति शो के‘कर्मवीर
स्पेशल’ एपिसोड
में जब अमिताभ बच्चन ने सिंधुताई से पूछा था कि आप ज्यादातर पिंक रंग की साड़ी
क्यों पहनती हैं तो ताई ने कहा था- जिंदगी में इतना काला देख लिया, अब
थोड़ा गुलाबी भी हो जाये! उनसे जब यह पूछा गया कि आपकी जिंदगी में जो भी गलत हुआ, आपने
कभी सवाल क्यों नहीं उठाये? तब ताई ने मुस्कुराते हुए
कहा था- जिंदगी में माफ तो मैंने अपने पति को भी कर दिया, जिसने
मुझे पत्थर मार-मारकर घर से निकाल दिया लेकिन मेरी
अंतरात्मा कहती है कि यदि ये छोड़ते नहीं, तो
मैं यहां तक नहीं पहुंचती।
सिंधुताई
के परिवार में हर वह शख्स शामिल था जिसका अपना परिवार नहीं था। वे उन तमाम लोगों
की परिजन थीं जिन्हें भाग्य ने नाते-रिश्तेदार और परिजन नहीं दिए थे। उनका कुनबा
विशाल, उदार
और करुणामयी ममता से भरा हृदय था जिसमें वह सबकुछ समाहित था जो इस दुनिया में अकेला, असहाय
और निराश्रित था।